शुक्रवार, 26 मार्च 2010

मेरा स्वप्न ! टाइम बिनडो के रस्ते कही में भूतो से मिला

तीनो काल एक दुसरे के सामानांतर है। यह मेरा स्वपन था। एक मशीन से जिसमे चुम्बक लगा था। पुरे पदार्थ को तोड़ कर
सिस्टम के अनुसार वेव को अलग कर रहा था कुछ था जो भूल गया। ग्रेविटी खीच रही थी उसीमे से नया हुबहू दूसरा आस्क सामने था। बो सब जनता था जो मेने किया या करूँगा आगे। मेने प्रश्न किया कैसे संभव है की में और तुम एक है। बो बोला अरे ग्रेविटी तो एक है बस मुझे उत्तर मिलगया पर में भूल गया।
स्वप्न से बहार आते आते केबल इतना ही याद रह गया। में तुरंत लिखना चाहता था पर उठते ही मम्मी ने बुला लिया की फ़ोन आया है।
यकीन करो उस दिन सरे दिन इतना सुखद महसूस हुआ की जैसे साडी दुनिया एक तरफ और मे एक तरफ जिसे रस्ते मे देखा मेने सोचा अरे ये तो फिर से मिलेंगे ये फालतू लड़ रहे है। मेरा तेरा कर रहे है। किसी का कुछ नहीं है।

भूत कुछ नहीं है बे हम में से ही है जो सामानांतर चलरही टाइम लाइन नहीं टाइम कुछ नहीं है कोई सदिश नहीं है इसे लिखा नहीं जा सकता पता नहीं क्यों। लिख पा रहाहू जो कहना चाहता हु वों कह नहीं पा रहा हू।