रविवार, 7 मार्च 2021

महिलाओं के प्रति जरूरत से ज्यादा राजनीती, सामाज , नेता और संगठन, सुप्रीम कोर्ट आदि का झुकाव और कहते है कानून सबके लिए बराबर है ?

सुप्रीम कोर्ट को संविधान का संरक्षक माना जाता है क्योंकि उसे संविधान की रक्षा, सुरक्षा और संरक्षण का अधिकार दिया गया है। यह संविधान के साथ असंगत पाए जाने पर एक कानून को शून्य और शून्य घोषित करने का अधिकार भी प्रदान कर सकता है।

१- क्या आपको पता है व्यक्ति शब्द में कौन कौन शामिल है ? व्यक्तियों में महिला, पुरुष, अन्य शामिल हैं, आप पढ़ना जारी रखिए, व्यक्तियों को सार्वजनिक रूप से जीने रहने और वसने की स्वतंत्रता भारतीय संबिधान ने दी है। क्योकि व्यक्ति सामाजिक प्राणी है वह समाज से अलग नहीं रह सकता जंगल में पूरी जिंदगी नहीं बिता सकता तो व्यक्तियों को व्यभिचार में जीने की स्वतंत्रता स्वतः संबिधान देता है ?  व्यक्ति के जन्म के बाद जैसे जैसे व्यक्ति विकसित होता है एक उम्र पर ही हार्मोन विकसित होते है पर यदि उसे मानव शरीर का ज्ञान न हो तो वह व्यभिचार नहीं करता है जबतक वह किसी ऐसे वातावरण को देख सुन नहीं लेता फिर वह उसपर प्रयोग करने लगता है यह व्यभिचार नहीं कहा जा सकता यह उसका अधिकार है। सर्वोच्य न्यायलय ने 27 सितंबर 2018 को इस बात को पुख्ता कर दिया और कहा इसके लिए उन्हें सजा नहीं दी जा सकती है। पर उसके इस कृत्य के लिए यदि व्यक्ति शादी शुदा है तो तलाक दिया या लिया जा सकता है। 
 
पारिवारिक रिश्तों का टूटना तय मानिये जब भी अत्यधिक व्यभिचार में रहने बाले व्यक्ति की शादी किसी विपरीत स्थिति के व्यक्ति से होगी जिसे व्यभिचार में अधिक रहना पसंद नहीं है। इस स्थिति में तलाक लेना आसान हो जाऐगा और बार-बार शादियाँ बड़े पैमाने पर कोई नहीं करना चाहेगा। शायद जनसँख्या नियंत्रण कारगार हो जाएगा पर असुरक्षित व्यभिचार करने से अजन्में बच्चों का क़त्ल भी बढ़ेगा और लोगों को झूठे कोर्ट केसों में फसाया जाएगा। सामाजिक तना बाना अंतिम दौर में होगा। क्या यह भारतीय संबिधान ने किया ? जी नहीं यह सब पाँच जजों ने सुप्रीम कोर्ट के जरिये किया इसे किस तरह सुप्रीम कोर्ट को बनाना चाहिए था? 
शायद कुछ बजह बनाई जा रही है इस तरह के अधूरे फैसलों से संबिधान बदलने का मसौदा सरकारों को मिल जाए। 
 
२ -शादी सहचर जीवन पुरुषों और महिलाओं के एक साथ रहने और सहवास के लिए होती है। जीवन की सार्थकता के लिए यही प्राकृतिक तौर पर सही व सभ्य सामाज की परिकल्पना है के लिए जरूरी बनी हुई है। यदि यह नहीं तो फिर सब जंगल और व्यक्ति जंगली जानवर होंगे। इसी तरह दो पुरुष-पुरुष या महिला-महिला को भी शादी करने का अधिकार मिल चूका है। या मिलने जा रहा है इसकी बजह उनके जीवन जीने की स्वतंत्रता है। 

जो व्यक्ति या परिवार शादी का मतलब - एक घरेलू काम करने बाली नौकरानी या नौकर लाना है जो कमाने बाला व्यक्ति हो या व्यपार सम्हाल सके उसे शादी नहीं कॉन्ट्रैक्ट समझौता कहा जा सकता है क्योंकि हिंदू विवाह एक कॉन्ट्रेक्ट शादी होती है। जिसमें पंडित नियम व् शर्ते बतलाता है शादी के समय इस कॉन्ट्रैक्ट के बने रहने के लिए इसलिए हिन्दू जो की कोई धर्म नहीं यह लोगों के जीवन वर्बाद कर देगा और जबरन थोपी गई शादियों से कई जीवन बर्बाद होते रहेंगे भारत और दुनियाँ में यह मेरे अपने विचार है।  

३ -प्रश्न क्या शादी के बाद सम्पत्ति का अधिकार किसे मिले यदि पहली, दूसरी,तीसरी,चौथी या अंतिम व्यक्ति को उस व्यक्ति की मौत के बाद व्यक्ति की संपत्ति में अधिकार है? इस प्रश्न का उत्तर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संपति के अधिकार को चार कैटेगरी में बांटा गया है। इसके अलाबा हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन-5 के अनुसार, शादी के समय वर या वधु पहले से शादीशुदा नहीं होने चाहिए। कोई भी महिला और पुरुष दूसरी शादी तभी कर सकते हैं जब उनकी पहली शादी या तो रद्द हो चुकी हो, या पहले पार्टनर की मौत हो चुकी हो, या फिर उनके बीच तलाक़ हो चुका हो। अर्थात अंतिम जीवित व्यक्तियों को ही सम्पत्ति में अधिकार मिलेगा और मिलना चाहिए इसकी बजह इस व्यक्ति को शादी करने की जरूरत क्यों पढ़ी होगी या हुई क्योंकि सबने साथ छोड़ दिया और उस इस अंतिम व्यक्ति का साथ ,सहचर ,सहवास मिला है। 

४ - कानून की नजरों में एक व्यक्ति को एक शादी के अस्तित्व में रहते हुए दूसरी शादी करना या तीसरी शादी या चौथी शादी करना अपराध है पर वही सुप्रीम कोर्ट यह भी कहता है एक व्यक्ति का व्यभिचार में रहना या करना अपराध नहीं है भारतीय कानून और संबिधान अनुसार दूसरे व्यक्ति को उस व्यक्ति से तलाक लेने का अधिकार है उसके जीवन की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत। 

इसका दूसरा पहलू  किसी से पीछा छुड़ाना जैसे की -कोई व्यक्ति जानबूझ कर शादी होते हुए किसी अन्य व्यक्ति से व्यभिचार करे और दूसरे पार्टनर से जानबूझ कर तलाक लेने की कोशिश करे और कई वजहों को सामने लाए उदाहरण के लिए क्योंकि विवाह स्वेक्षा से नहीं हुआ था या विवाह के पहले से वह उस अन्य व्यक्ति के साथ सहचर में है या था या विवाह से कोई सुख नहीं मिला और साथ ही उसकी सम्पत्ति में अधिकार भी माँगे यह उस व्यक्ति के साथ दो तरफ से हमला करना होगा जो शादी तोडना नहीं चाहता इसके अलाबा तीसरी तरफ से भी एक और हमला उस व्यक्ति पर होगा जब की शादी से बच्चे हो तो इस स्थिति में एक व्यक्ति का जीवन छीन भिन हो गया और न्याय मौजूदा कानून में नहीं है।    

५-वहीं भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार, वही व्यक्ति संपति का अधिकारी हो सकता है जिसका नाम 'विल' में उसने मरने से पहले दिया हो। जिसमें सबसे पहला हक़ या कहें क्लास वन कैटेगरी में पत्नी, बच्चे, मां, अगर बेटे की मौत हो चुकी है तो उसकी विधवा और बच्चे आते हैं लेकिन अगर बेटी की मौत हो चुकी है तो ऐसी स्थिति में संपति में हक़दार केवल बच्चे होंगे और पति को कोई हिस्सा नहीं मिलेगा। इस अधिनियम के तहत सभी को उसके द्वारा अर्जित की गई संपति में बराबर का हक़ मिलेगा। " 

अगर क्लास वन में संपति का अधिकार पाने के लिए कोई उत्ताराधिकारी ही नहीं है तो ऐसी स्थिति में संपति का अधिकार क्लास टू में चला जाता है जिसमें पिता के अलावा भाई-बहन और दूसरे रिश्तेदारों को अधिकार मिल जाता है.

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 से पहले हिंदुओं में एक से ज़्यादा शादी मान्य क़रार दी जाती थी यानी अगर किसी व्यक्ति की दो पत्नियां होती थीं तो वो शादी क़ानूनी तौर पर मान्य थी। पति की मृत्यु होने पर विधवाओं और बच्चों का भी संपति पर अधिकार था लेकिन उसको तीन हिस्सों में बांटा जाता था जिसमें एक हिस्सा पत्नियों को और अगर दोनों पत्नियों से मृतक के बच्चे हैं तो वो बच्चों में एक-एक हिस्सा बंट जाता था लेकिन अगर कोई शादी इस अधिनियम के लागू होने के बाद होती है तो ऐसी स्थिति में दूसरी शादी मान्य नहीं मानी जाती लेकिन अगर उस रिश्ते से कोई संतान होती है तो ऐसी स्थिति में बच्चा क़ानूनी रूप से संपति का अधिकारी होगा क्योंकि क़ानून बच्चे को नाजायज़ नहीं मानता। "

लेकिन क़ानून ये भी कहता है कि अगर किसी ने हिंदू विवाह अधिनियम के आने से पहले दो शादियां की थीं तो वो अवैध नहीं मानी जाएगी लेकिन इस अधिनियम के आने के बाद अगर कोई व्यक्ति दूसरी शादी करता है तो दूसरी शादी मान्य नहीं होगी। 

अन्य धर्मों में क्या हैं प्रावधान?
"मुसलमानो में जहां शिया और सुन्नी के लिए अलग-अलग क़ानून है और क्योंकि भारत में ज्यादातर सुन्नी हैं और इनमें से भी अधिकतर हनफ़ी क़ानून को मानते हैं तो ऐसे में किसी भी व्यक्ति की मौत के बाद उसकी विधवा के साथ जो भी मेहर की रक़म तय की गई होती है वो सबसे पहले दी जाती है. फिर ये देखा जाता है कि कफ़न-दफ़न का ख़र्च, ख़िदमत में लगे लोगों और जो उधार लिया था वो चुकाया जाए और जो बचता है उसका एक तिहाई विरासत के तौर पर दिया जा सकता है. ईसाइयों में एक तिहाई पत्नी के पास जाता है और दो तिहाई बच्चों में बंट जाता है और अगर बच्चे नहीं हैं तो आधा हिस्सा पत्नी को और आधा हिस्सा रिश्तेदारों को चला जाता है."


लेकिन अगर 'विल' ही न बनी हो तो ऐसी स्थिति में संपत्ति का अधिकार किसके पास होगा?  

६ - यदि कोई व्यक्ति उसके सहचर व्यक्ति से व्यभिचार करता है और किसी को आपत्ति हो तो कोई उस जोड़े से कोई मार पीट नहीं कर सकता है न तो पुलिस न ही समाज चाहे वह उस व्यक्ति की बहिन,पत्नी,बेटी,माँ, दोस्त, पुरुष ही क्यों न हो यहाँ यह स्वतंत्रता संबिधान देता है व्यक्ति को की स्वेक्षा से किया गया व्यभिचार अपराध नहीं और करने बाले अपराधी नहीं होंगे और देश ,सुप्रीम कोर्ट संबिधान और कानून से चलता है। 

७- प्रश्न क्या -क़ानून के तहत शादी करने के इच्छुक जोड़े के मूल अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है ? 
भारत में साल 1954 में एक स्पेशल मैरेज एक्ट बनाया गया जिसके तहत दो भारतीय नागरिक एक दूसरे के साथ विवाह के बंधन में बंध सकते हैं. इसके लिए लड़के की उम्र कम से कम 21 साल और लड़की की उम्र कम से कम 18 साल होनी चाहिए। 

भारत में लोगों को विवाह करने का अधिकार हासिल है। लेकिन जब आप इस *क़ानून के तहत शादी करने के लिए अपने इस अधिकार का इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं तो विवाह के लिए तैयार लड़के-लड़की को इस क़ानून के तहत शादी के लिए आवेदन करना होता है। 

इस आवेदन में दोनों पक्षों से जुड़ी कई जानकारियां देनी होती हैं जिनमें नाम, उम्र, जन्मतिथि से लेकर पते, पिनकोड आदि शामिल हैं। अब स्पेशल मैरेज एक्टर के सेक्शन (6) 2 के तहत (सेक्शन 5, 7, 8, 9 और 10)  मैरेज ऑफिसर अपने दफ़्तर में किसी ऐसी जगह लड़के लड़की की ओर से दिया गया आवेदन चिपकाता है जो कि सबकी नज़रों में आती हो। अगर नोटिस प्रकाशित होने के 30 दिन के भीतर कोई व्यक्ति इस शादी पर आपत्ति दर्ज नहीं करता है तो संबंधित लड़के और लड़की की शादी करा दी जाती है। 

स्पेशल मैरिज़ एक्ट संविधान के आर्टिकल 14, 15 और 21 का उल्लंघन करता है। नोटिस प्रकाशित करने से संबंधित व्यक्तियों की निजी जानकारी सार्वजनिक हो जाती है और जिसका उनके ऊपर ग़लत असर पड़ सकता है।*शादी करने के इच्छुक जोड़े के मूल अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है और उन्हें भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 के तहत मिले निजता के अधिकार से वंचित करता है।

शादी करने की उम्र व्यक्तियों का निजी मामला है सरकारों को इसमें दख्ल नहीं देना चाहिए। संबिधान ने लोगों को उनके जीवन और जीवन जीने की स्वतंत्रता दी है। पर समय के साथ इसमें बदलाब होना भी जरुरी हो जाता है। व्यक्तियों को शिक्षा दी जाए महिलाओ को जरूर ताकी शादी और तलाक में भरणपोषण पाना व्यपार व दूसरी तरफ सजा न बनकर रह जाए वर्तमान समय में जहाँ रोजगार मिल पाना हर व्यक्ति के लिए मुश्किल है। शादी के बाद कम उम्र में बच्चा होने की बात व्यर्थ है क्योकि शादी की उम्र तय है। तो बच्चा महिला को रखना है या नहीं इसका फैसला महिला करेगी यहाँ कानून या सरकार नहीं करेगी पर शादी के बाद पति का भी आधा अधिकार बनता है आखिर इसमें उसकी भी हिस्सेदारी है बच्चे को पैदा करने में पर क्योंकि बच्चा कोखमे महिला रखती है। इसलिए पहला फैसला मान्य होगा।

८ -बलात्कारों की बजह और शादी की न्‍यूनतम उम्र ? 
अशिक्षा और बेरोजगारी का बढ़ना जिससे किसी व्यक्ति को सुरक्षा नहीं मिल पा रही है।  इसकी बजह बदलता समाज और देर से विवाह का होना शादी की उम्र तक रोजगार का न मिलपाना और कुछ हद तक मिडिया जगत और अश्लीलता इंटरनेट के द्वारा फैलाना किसी भी उम्र के व्यक्ति को असुरक्षित महसूस करवाता है। उसे डर रहता है उसकी कब इज्जत लूट जाए स्कूल कॉलेज जाते समय और शादी की उम्र बढ़ जाने से फायदा किसे होगा शादियाँ टूटती है पारिवारिक झगड़े बढ़ते है तलाक के मामले ज्यादा बढ़ते है।
 
भारत में 1929 के शारदा क़ानून के तहत शादी की न्‍यूनतम उम्र लड़कों के लिए 18 और लड़कियों के लिए 14 साल तय की गई थी। फिर 1978 में संशोधन के बाद लड़कों के लिए ये सीमा 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल हो गई। लोग रिटायर नौकरियों से देरी से होंगे यदि उनकी शादी और नौकरी जल्द मिलजाएगी तो पेंशन ख़त्म की गई और शायद लोग कभी रिटायर ही ना हो आगे इसके लिए रोजगार और शादी की उम्र बढ़ाना एक उपाय सरकारों को दिखता है। 

भारत में 'एज ऑफ़ कन्सेंट', यानी यौन संबंध बनाने के लिए सहमति की उम्र 18 है। अगर शादी की उम्र बढ़ गई, तो 18 से 21 के बीच बनाए गए यौन संबंध, 'प्री-मैरिटल सेक्स' की श्रेणी में आ जाएँगे। यह जरुरी नहीं है क्योंकि सभ्य समाज घर शिक्षित लोगो की पहचान शादी से पहले यौन संबंध बनाना ठीक नहीं है व्यक्तिगत तौर पर कोई इसे पहचान नहीं सकता और क़ानून इसे नहीं रोकेगा और रोकना भी नहीं चाहिए परन्तु जीवन के लिए रिश्तों के लिए शादी की जाती है और शादी सहचर व सहवास फिर संतान के लिए की जाती है। प्रेम के लिए कोई और हो सकता है पर शादी एक से की जाती है पर यह समाज नहीं मानेगा और तलाक होता रहेगा हर दिन और जहाँ तक सभ्यता की बात है। तो तलाक के बाद पुनः विवाह यह सामाजिक व शारीरिक व व्यक्तिगत जरूरत पर निर्भर करता है। 

यदि 21 साल शादी की कानूनी उम्र सीमा की गई तो 18 साल की वयस्क लड़कियाँ जब परिवार के ख़िलाफ़ अपनी पसंद के लड़के से शादी करना चाहेंगी, तो मां-बाप को उनकी बात ना मानने के लिए क़ानून की आड़ में एक रास्ता मिल जाएगा, नतीजा ये कि लड़की की मदद की जगह ये उनकी मर्ज़ी को और कम कर देगा और उनके लिए जेल का ख़तरा भी बन जाएगा और यदि शादी के बाद कुछ सालों महीनों के बाद लड़कियाँ तलाक लेती है या झूठे मुकदमा करके उनके अपने निजी मामले को अदालतों तक लेजा रही है।  इसका शिक्षा से कोई लेना देना नहीं क्योंकि लड़कियों को लगातार मिल रही कानूनी मदद से परिवार टूट रहे है और तलाक के मामले बढ़ रहे है दूसरी तरफ उस लड़के व् उसके परिवार को भी मानशिक परेशानी होगी जिसकी कोई गलती नहीं होती है।
 
यूनिफॉर्म सिविल कोड- 2017 में, एक समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार किया गया था जो समान-लिंग विवाह को वैध करेगा। एक साझेदारी को समान रूप से "एक महिला के साथ एक पुरुष के साथ रहना, दूसरे पुरुष के साथ एक पुरुष, दूसरी महिला के साथ एक महिला, एक दूसरे के साथ एक ट्रांसजेंडर या एक पुरुष या एक महिला के साथ एक ट्रांसजेंडर" के रूप में परिभाषित किया गया है। यह भी प्रदान करता है कि जो भी दो व्यक्ति दो साल से अधिक की साझेदारी में हैं, उनके विवाहित जोड़ों के समान अधिकार और दायित्व होंगे। यह सभी विवाहों के पंजीकरण को भी अनिवार्य करता है। इसके अलावा, मसौदे में कहा गया है कि "एक साझेदारी में सभी विवाहित जोड़े और जोड़े एक बच्चे को गोद लेने के हकदार हैं। विवाहित जोड़े या भागीदारों के यौन अभिविन्यास को गोद लेने के उनके अधिकार के लिए एक बार नहीं होना चाहिए। गैर-विषमलैंगिक जोड़े। एक बच्चे को गोद लेने के लिए समान रूप से हकदार हैं। ” अंत में, यूनिफॉर्म सिविल कोड भारत के विवाह संबंधी सभी कानूनों को निरस्त करने का प्रावधान करता है।