सोमवार, 11 अप्रैल 2011

मीडिया व देश का लोकतंत्र

हमारे भारत के हर चुनाव चाहे वह लोकसभा का हो या विधान सभा का या नगरनिगम चुनाव हो कोई भी चुनाव हो, हमें लोग चुन्ने का आधिकार होना चाहिए जो मौजूदा चुनाव व्यवस्था में नहीं है जैसा की हमे दिखता है और हमे बार बार उन्ही चहरो को देखना पड़ता है जिन्हें हम पूर्व के चुनावो में वोट दे चुके थे पर उन्होंने वैसा काम नहीं किया जो हमारे देश में,राज्यों में,  होना चाहिए था,  हम उन्हें चुनना ही नहीं चाहते है पर हमे हर चुनाव पार्टी में वाही लोग दिखाई देते है क्या हम वोट डालने ही न जाये क्या यही एक और अंतिम फेसला ले इससे क्या होगा कोइतो जायेगा वोट देने और ये फिर से वाही चुने जाएँगे में आसहाय हू इस लोकतंत्र रुपी व्यवस्था से में क्या खुद संसद के लोग भी चाहे तो भी बिना जनता की मदद के बिना कुछ नहीं कर सकते उन्हें मालूम होते हुए गलत मंत्री चुना जा रहा है पर वो भी उसे ही वोट देने को मजबूर है 
तो क्यों न हमे आगे आकर इस भ्रष्ट व्यवस्था को तकनीक से उपाय ढूंड कर लाना चाहिए जिससे जाहिर हो की  हम किस ओर है, हां की ओर या ना की ओर.
अब तो मोबाइल का जमाना है १२१ करोड़ लोगो के पास है यदि हर दिन एक बात के लिए जनता से वोट कराये  जाये मोबाइल के माध्यम से की आप फलाने प्रश्न के उत्तर से सहमत है या नहीं और हा एक मोबाइल एक बार ही दिन में एक प्रश्न के लिए वोट कर सकता हो वो कईबार एक ही प्रसन का उत्तर ना दे सके दुसरे दिन पुनः वाही मोबाइल यूजर उस विशेष मशीन पर वोट कर सके आकडे सार्वजिनिक किये जा सकते है मशीन उन सच्चे व्यक्ति के पास रहेगी जो देश को आगे लेजाने की और देखाता हो. इससे समय बचेगा न्याय मिलने और होने में भी, इसी तरह की कई सोच लोगो के पास होगी पर यदि हम सभी से यदि १-Rs. भी आपने लिया तो १२१ करोड़ होजाता है तो क्या कोई मोबाइल कंपनी को फायदा नहीं होगा, होगा, बस बात ईमानदारी की है यही राजनीति है बिना किसी को पताचले कैसे किसी कंपनी का फायदा करना है यही मोजूदा व्यवस्था है पर यदि ईमानदारी से कोई इस काम को करता भी है तो यही प्रश्न उठाये जा सकते है. जो आज देश में हो रहा है.
मीडिया  भी कोई मौका चूकना नहीं चाहती आपनी टी आर पि के लिए या वह सच्ची है या उसके कर्मचारियों को उनके मालिको की बात समझ में ठीक से आ ही नहीं रही है यह भी ठीक ऐसा ही जैसा की ऊपर लिखी लाइनों में है आपसे पूछा गया प्रश्न है. जिसके दो उत्तर है.?