ब्लॉग के माध्यम से - नीतिया बनाने में ! सरकार से कहता हूँ । गद्दी छोड़ो अब !
हमें देश ऐसा चाहिए - जिसका रुपया डॉलर के बराबर हो और ऐसा जब होगा जब हम विदेशियों के साथ बराबर व्यापर कर सके क्यों की आज भ्रष्ट राजनीति के चलते विदेशी तो उनका सामान हमे बैचते है पर हमसे वो कुछ नहीं खरीदते है क्योकि हम नहीं वो हमारी जरुरत बनते जा रहे है।
1-तकनीक ही एक ऐसा रास्ता है जो की रुपया और डॉलर को बराबर ला सकता है ।
2- हम उनके देश में बनी वस्तुए , उत्पादों आदि पर कम ही निर्भर रहना होगा।
3-हमारे उत्पादों को खासकर खाने की वस्तुए , आनाज ,फल , पानी , जहरीला होने से रोके नहीं तो मार्केट मूल्य कम हो जाएगा ।
4-खनिजो को आयत ना करे हम वही व्यापर करे जो जिसकी तकनीक हमारी खुद की हो ।
5-देश से ऐसे निर्यात को बढ़ाना हमारा लक्ष्य नहीं होना चाहिए जो कच्चा मॉल की तरह उनके देश में जाता हो और हमारे देश दुवारा उसी से तैयार मॉल दुगने दम में ख़रीदा जाता हो क्योकि मान लो की एक धातु सिलिका का खनिज हमने निर्यात और इलेक्ट्रोनिक पार्ट्स के रूप में ख़रीदे ऐसी नीतिया बनाने से यदि हम निर्यात पर जोर देने के लिए सिलिका का दाम /रेट कम करदे या बढाकर देश के उपभोग को नियंत्रित करे प्रभाव हमे ही पड़ेगा ।
6-हमे स्वस्थ खेती पर करनी होगी और इसके उत्पादों से बने खाने को विदेशों तक ध्यान देना है पहुचना उद्देश्य नहीं बल्कि वहां हमारे बिग बाजार होने चाहिए और इन्हे टेस्टिंग करने के लिए अत्याधुनिक तकनीक देशी हो ।
आमेरिका , चीन , लन्दन , जापान , आस्टेलिया , रूस ,कोरिया , जर्मनी ,स्विजर्लेंद , इटली , यु ऐ ई ,.....
सभी हमारे बाजार को देखते है और लोक लुभाब्नी नीतिया लधु समय के लिए, यहाँ की नीतियों से कुछ नहीं होगा या की चंद रुपयों की लालच में देश को बैच देते है ट्रेन गलत पटरी पर है यहाँ उनकी फेक्टरी रोजगार के नाम पर खुल्वादेते है खुद खूब खुश होते है और विदेशों में उनका नाम भी होता है जनता भी नाम लेती है पर दूसरी तरफ जिस देश की कंपनी हमारे देश में खुली है उस देश के लोगो को फायदा होता है वह कोई भी बेरोजगार नहीं होता सड़के दिन के समय सूनी होती है क्यों की सब कम तकनीक से होता है ऊर्जा में वे खुद पर निर्भर है उनका निर्यात हर पल बढ़ता है क्योकि वे जानते थे आदमी स्वाभिमानी और देश को भी वैसा ही बनाना चाहता है विश्व बाजारों पर ही विश्व आर्थव्यवस्था निर्भर है ऐसा सच भी है इसी से भारत देश के नेता सो रहे है । यही विदेशी नेता व वहा की कंपनिया , व्यापारी जगत भी खुश रहता है । रोटी ,कपड़ा , माकन , सब कुछ विदेशी ही आज हमारे खुद के देश में है और यही बेचते है।
हमें देश ऐसा चाहिए - जिसका रुपया डॉलर के बराबर हो और ऐसा जब होगा जब हम विदेशियों के साथ बराबर व्यापर कर सके क्यों की आज भ्रष्ट राजनीति के चलते विदेशी तो उनका सामान हमे बैचते है पर हमसे वो कुछ नहीं खरीदते है क्योकि हम नहीं वो हमारी जरुरत बनते जा रहे है।
1-तकनीक ही एक ऐसा रास्ता है जो की रुपया और डॉलर को बराबर ला सकता है ।
2- हम उनके देश में बनी वस्तुए , उत्पादों आदि पर कम ही निर्भर रहना होगा।
3-हमारे उत्पादों को खासकर खाने की वस्तुए , आनाज ,फल , पानी , जहरीला होने से रोके नहीं तो मार्केट मूल्य कम हो जाएगा ।
4-खनिजो को आयत ना करे हम वही व्यापर करे जो जिसकी तकनीक हमारी खुद की हो ।
5-देश से ऐसे निर्यात को बढ़ाना हमारा लक्ष्य नहीं होना चाहिए जो कच्चा मॉल की तरह उनके देश में जाता हो और हमारे देश दुवारा उसी से तैयार मॉल दुगने दम में ख़रीदा जाता हो क्योकि मान लो की एक धातु सिलिका का खनिज हमने निर्यात और इलेक्ट्रोनिक पार्ट्स के रूप में ख़रीदे ऐसी नीतिया बनाने से यदि हम निर्यात पर जोर देने के लिए सिलिका का दाम /रेट कम करदे या बढाकर देश के उपभोग को नियंत्रित करे प्रभाव हमे ही पड़ेगा ।
6-हमे स्वस्थ खेती पर करनी होगी और इसके उत्पादों से बने खाने को विदेशों तक ध्यान देना है पहुचना उद्देश्य नहीं बल्कि वहां हमारे बिग बाजार होने चाहिए और इन्हे टेस्टिंग करने के लिए अत्याधुनिक तकनीक देशी हो ।
आमेरिका , चीन , लन्दन , जापान , आस्टेलिया , रूस ,कोरिया , जर्मनी ,स्विजर्लेंद , इटली , यु ऐ ई ,.....
सभी हमारे बाजार को देखते है और लोक लुभाब्नी नीतिया लधु समय के लिए, यहाँ की नीतियों से कुछ नहीं होगा या की चंद रुपयों की लालच में देश को बैच देते है ट्रेन गलत पटरी पर है यहाँ उनकी फेक्टरी रोजगार के नाम पर खुल्वादेते है खुद खूब खुश होते है और विदेशों में उनका नाम भी होता है जनता भी नाम लेती है पर दूसरी तरफ जिस देश की कंपनी हमारे देश में खुली है उस देश के लोगो को फायदा होता है वह कोई भी बेरोजगार नहीं होता सड़के दिन के समय सूनी होती है क्यों की सब कम तकनीक से होता है ऊर्जा में वे खुद पर निर्भर है उनका निर्यात हर पल बढ़ता है क्योकि वे जानते थे आदमी स्वाभिमानी और देश को भी वैसा ही बनाना चाहता है विश्व बाजारों पर ही विश्व आर्थव्यवस्था निर्भर है ऐसा सच भी है इसी से भारत देश के नेता सो रहे है । यही विदेशी नेता व वहा की कंपनिया , व्यापारी जगत भी खुश रहता है । रोटी ,कपड़ा , माकन , सब कुछ विदेशी ही आज हमारे खुद के देश में है और यही बेचते है।
- हमारे विचारो और टेक्नोलोजी जो हम सोचते है उसे पूरा करने के लिए ना तो प्लेटफोर्म यदि कर भी ले तो ना बाजार नहीं है।
- इनफोर्मेसन टेक्नोलोजी भी कुछ हद तक यदि उसकी मशीन भी हमारी खुद की विकसित किहुई हो और सॉफ्टवेर जो खुद का OS and AP हो। तब नहीं तो हम फिर से हम एक जुए की भूमिका में उनका ही कम कर रहे है।